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Updated: Nov 12, 2023

गुरूदर्शन...

, हम मथुरा पहुंचे और पूज्य गुरूदेव के कार्यालय, घीयामंडी में उनके दर्शन किये। कार्यालय में अनेक चित्र लगे थे। अखण्ड-ज्योति कार्यालय अब की तरह नहीं था। अब तो बड़ा परिवर्तन आ गया है। पहले जीने से ऊपर चढ़ने के बाद एक छोटी .सी छत, स्वच्छ सादा कमरा, जिस पर फर्श बिछा हुआ था। उस पर चाँदनी, बीच में डेस्क, एक छोटा सा कमरा दायीं ओर था चित्रों में सबसे अधिक प्रभाव स्वामी विरिजानन्द के चित्रों ने डाला। दयानन्द जी के चित्र भी प्रभावशाली थे। जीने पर और अन्य स्थानों पर सुन्दर-सुन्दर चरित्र-निर्माण सम्बन्धी और बुरी आदतें छोड़ने सम्बन्धी स्लोगन थे। कुछ देर बाद गुरूजी पधारे। सबसे पहले बात गुरूदेव ने अपने पुराने परिचित डा 0 सिन्हा से की। वे दोनों साथ वाले छोटे कमरे में चले गये। उसके बाद पूज्य भाई साहब का नम्बर था। भाई साहब स्वयं हनुमान जी के भक्त थे। तब फिर मेरा नम्बर था। उन लोगों की बातों से मैं जान गया था कि चर्चा का विषय 'गायत्री मंत्र' होगा। अतः अपने मन में 'गायत्री के सम्बन्ध में, जो-जो समझ में आया था. सोचकर रख लिया। जब मेरा नम्बर आया. गुरूदेव ने गायत्री के विषय में कुछ कहा। ठीक से याद नहीं है। मैनें अहंकारवश बातचीत में कहा, ब्राह्मण हूँ , यज्ञोपवीत तेरह वर्ष की आयु में हो गया था ; माता-पिता दोनों ही संस्कारी हैं तब से ही 'गायत्री मंत्र' पूजन शुरू कर दिया था। काशी का विद्यार्थी हूँ , अपना प्रभाव डालने के लिए मालवीयजी, राधाकृष्णन जी का परिचय और आशीर्वाद की बात कह डाली। सब कुछ अहंकार से ओत-प्रोत था। गुरूजी ने बड़ी विनयशीलता से कहा आप काफी भाग्यशाली हैं, जिसको विद्या के साथ-साथ शिक्षा और दीक्षा दोनों हो चुकी है। इन तीन शब्दों का अर्थ तब तो समझ नहीं आया था। धीरे-धीरे उनका रहस्य खुलता गया। अस्तु।


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