- Dr Ravi Prakash Mathur
- Nov 9, 2023
- 2 min read
Updated: Nov 12, 2023
बाल्यकाल की अनेक घटनाओं का उल्लेख न करते हुए और उन सभी महानुभावों को नतमस्तक करते हुए भगवान शिव का स्मरण करता हूँ ।
आदरणीय पूज्य स्मरणीय श्री मदन मोहन मालवीय, डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी, श्री गोपीनाथ जी, कालीपद मुखर्जी, श्री बनर्जी, ये सब वे हैं जिन्होंने समय-समय पर मेरी मानसिकता को बनाया, सवाँरा और परिमार्जित किया, और समय-समय पर मेरा आध्यात्मिक मार्ग-दर्शन किया। कुछ और भी महानुभाव हैं जो साधु-संतों की श्रेणी में आते हैं , और मुझे बहुत कुछ दिया। मैं अकिंचन हूँ और मेरे पास वाणी नहीं है कि मैं उनको धन्यवाद दे सकूँ। नतमस्तक हो उन सभी को मेरा वंदन स्वीकार हो । गंगा स्वरूपिनी माँ एवं भगवान शंकर स्वरूप अपने पितृ-पाद को प्रणाम करके मैं गायत्री साधना का यह दिव्यं-स्वरूप, सर्वजन हिताय, अपने सानस को शुद्ध करने हेतु लिख रहा हूँ। इसमें भूलें अवश्य होंगी। कहीं-कहीं अति सहयोग की भी मैं विद्वजनों से प्रार्थना करता । हूँ, उसके लिए वे मुझे क्षमा करें। . इस जन्म में मेरा आध्यात्मिक जीवन का सूर्योदय जब हुआ, मैं आगरा में रासायनिक परीक्षक की प्रयोगशाला में सेवारत था । एक दिन मेरे पूज्य भाई साहब प्रयाग से अपने एक मित्र डा0 टी0 सिन्हा (होम्योपैथ) के साथ मेरे घर पधारे। वे मथुरा जा रहे थे। डा0 साहब ।ने कहा कि-चलो तुम्हें एक महात्मा के दर्शनं करावें। मैनें हँसकर जवाब दिया कि मुझे महात्मा के दर्शन नहीं करने। मेरे पास इस उम्र में फिजूल खर्च करने को पैसा नहीं है। मेरी माताजी ने प्रेरणा दी। उसी समय मेरे मित्र एन0 पी0 गर्ग ने कहा कि जब माताजी कह रही हैं, तो जाते क्यों नहीं? अपने विनोदी स्वभाव के कारण मुझे ग्यारह रूपये देते हुए बोले, खर्चा मुझसे ले लो।
अस्तु
コメント